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बलरामपुर जिला – पूरा इतिहास, जलवायु, मुख्य फसलें, राजनीति, प्रसिद्ध हस्तियाँ, पर्यटन स्थल और जनसँख्या - UP Exam Guru

बलरामपुर जिला – पूरा इतिहास, जलवायु, मुख्य फसलें, राजनीति, प्रसिद्ध हस्तियाँ, पर्यटन स्थल और जनसँख्या - UP Exam Guru

बलरामपुर जिला – पूरा इतिहास, जलवायु, मुख्य फसलें, राजनीति, प्रसिद्ध हस्तियाँ, पर्यटन स्थल और जनसँख्या - UP Exam Guru

 
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बलरामपुर जिला का नाम कैसे पड़ा 

बलरामपुर जिला का नाम हिमालय की पर्वतमाला तराई क्षेत्र में गुजरात के जानवाढ से क्षत्रिय राजा माधव सिंह के द्वारा 570 साल पहले बलरामपुर नगर की स्थापना किया गया था। जो देवीपाटन मंडल में आता है, इसका मुख्यालय बलरामपुर शहर में स्थित है। बलरामपुर का नाम पुराने राजा बलराम दास के नाम पर पड़ा था। बलरामपुर के पहले राजा माधव सिंह और अंतिम शासक महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह थे।

बलरामपुर जिला का इतिहास

बलरामपुर जिला जो प्राचीन समय में कौशल महाजनपद इकौना राज का एक हिस्सा हुआ करता था जो मध्यकालीन युग में मुगल शासन के दौरान अवध सूबे बहराइच सरकार के अधीन था। लेकिन फरवरी 1856 में ब्रिटिश सरकार के आदेश से यह क्षेत्र अवध के शासक के नियंत्रण में आ गया था। बाद में अंग्रेज सरकार द्वारा जब गोंडा को बहराइच से अलग किया गया, तो बलरामपुर को गोंडा जनपद में शामिल कर दिया गया और इस क्रम में बलरामपुर अपने स्थापना के 547 वर्ष बाद 25 मई 1997 को गोंडा जिला से अलग होकर स्वतंत्र जिला के रूप में अपने अस्तित्व में आया। बलरामपुर भारत के उत्तर प्रदेश का एक उत्तरी पूर्वी जिला है। हम जानते हैं कि प्राचीन काल में श्रावस्ती, कौशल की राजधानी थी अर्थात प्राचीन श्रावस्ती के खंडहर जो लगभग 400 एकड़ की क्षेत्र में फैला हुआ है उत्तर की दिशा की ओर राप्ती नदी की ओर फैला हुआ है। महेट का प्रवेश द्वार जो मिट्टी से बना हुआ है जिसका निर्माण अर्ध चंद्राकर है, जबकि सोमनाथ मंदिर से महान बौद्ध परंपरा और बलरामपुर के मठ का इतिहास को दर्शाते हैं। चितवन मठ देश के सबसे पुराने मठों में से एक गौतम बुद्ध की पसंदीदा माना जाता है। इनमें 12वीं शताब्दी के शिलालेख मिलते हैं और पास में एक पीपल का पवित्र वृक्ष भी है इसे लेकर ऐसी धारणा है की यह वृक्ष बोध गया के मूल्य बोधि वृक्ष से एक पौधे से लेकर उगाया गया था और गौतम बुद्ध ने 21वीं सदी तक इस पीपल वृक्ष के नीचे अपना समय बिताया था। 
 
कुछ प्राचीन इतिहास अवध सूबे बहराइच सरकार का एक हिस्सा था जो ब्रिटिश सरकार द्वारा जनवरी 1856 में अपने उधघोसन के नियंत्रण में अपनाया गया था। ब्रिटिश सरकार ने गोंडा को बहराइच से अलग कर दिया था और यह गोंडा का हिस्सा बन गया था ब्रिटिश शासन के दौरान गोंडा में अपने मुख्यालय के साथ इस क्षेत्र को प्रशासन के लिए एक कमीशन का गठन किया गया था और सकरापुर, कर्नलगंज में सैन कमान स्थापित किया गया था। इसके दौरान बलरामपुर के गोंडा जिले को लेकर उतरौला तहसील अर्थात तालुका बन गया था। जिसमें तीन तहसील गोंडा सदर, तरबगंज और उतरौला शामिल थीं। आज़ादी के बलरामपुर स्टेट को उतरौला तहसील के में मिला दिया गया था। 01 जुलाई 1953 को उतरौला की तहसील को बलरामपुर तहसील में विभाजित कर दिया गया था। 1927 में गोंडा सदर तहसील, तुलसीपुर, मनकापुर और करनैलगंज से और तीन नई तहसीलें बनाई गई थी बाद में 1997 गोंडा जिले को दो भागों में विभाजित किया गया और एक नए जिले के रूप में बलरामपुर जिले का जन्म हुआ। जो तत्कालीन गोंडा जिले से बलरामपुर, उतरौला, तुलसीपुर और उत्तर भागों के तीन तहसील को मिलाकर बनाया गया। भौगोलिक रूप से बलरामपुर जिले का क्षेत्रफल 33.49 वर्ग किलोमीटर राप्ती और घाघरा नदी के बीच में स्थित है।

बलरामपुर के बगल में नेपाल देश का देवखुरी जिले के साथ उत्तरी सीमा शिव को भी दुधवा दक्षिणी किनारे पर के अनुसरण करते हुए उत्तर पूर्व में नेपाल देश के कपिलवस्तु जिले से अपनी सीमा को साझा करता है जबकि शेष बलरामपुर उत्तर प्रदेश राज्य के जिलों से घिरा हुआ है इसके पूर्व में सिद्धार्थनगर दक्षिण में बस्ती, दक्षिण पूर्व में गोंडा पश्चिम में श्रावस्ती जिले की सीमा लगती है

बलरामपुर की जनसंख्या 2148795 को (2011) जनगणना के अनुसार 
पुरुषों की जनसंख्या 1114839
महिलाओं की जनसंख्या 1033956
बलरामपुर जिले में कितने गांव पड़ते हैं; 1030 गांव पढ़ते हैं
यह डाटा भूलेख विभाग के अनुसार है 
बलरामपुर जिले की साक्षरता दर कितनी है; 49.50%
बलरामपुर जिले में पुरुष साक्षरता दर 60% 
महिला साक्षरता दर 38.50%
बलरामपुर में ग्राम पंचायत की संख्या 801 हैं 
बलरामपुर जिले में लिंगानुपात 1000 पुरुषों पर 928 महिलाएं हैं
बलरामपुर जिला जनसंख्या के घनत्व में जिले में 6.62 प्रति व्यक्ति वर्ग किलोमीटर भूभाग पर संयोजित है
बलरामपुर जिले में हिंदू धर्म को मानने वाले 62% और मुस्लिम 37% अन्य धर्म के लोग एक प्रतिशत रहते हैं बलरामपुर का पिन कोड नंबर 271201 है, बलरामपुर जिलों का RTO नंबर 47 है, बलरामपुर जिले की लखनऊ से दूरी 160 किलोमीटर।
 
बलरामपुर शहर को NH 27 और NH 730 देश के अन्य शहरों से जोड़ते हैं। देश की राजधानी से बलरामपुर शहर 720 किलोमीटर है।

बलरामपुर जिले की प्रमुख भाषाएं अवधि और हिंदी है

बलरामपुर जिला में नगर पंचायत और नगर पालिका दोनों चार हैं 
बलरामपुर जिला में ब्लॉक की संख्या 9 है 
हरैया सतघरवा, बलरामपुर, तुलसीपुर, गैसाड़ी, पचपेड़वा, श्री दत्त गंज, उतरौला, भैंसड़ा बुजुर्ग, रेहरा बाजार।

बलरामपुर जिले में कितने तहसील हैं
उतरौला, तुलसीपुर और बलरामपुर

बलरामपुर जिले में 14 थाना है

और उनके नाम कोतवाली नगर, कोतवाली देहात, महाराजगंज तराई, गौरा चौराहा, तुलसीपुर कोतवाली, कोतवाली जरवा, कोतवाली गैसड़ी, पचपेड़वा, ललिया, हरिया कोतवाली, उतरौला, रेहरा बाजार, नगर महिला थाना बलरामपुर।

बलरामपुर जिले में चार विधानसभा सीट हैं

बलरामपुर सदर, उतरौला, तुलसीपुर और गैसड़ी।

बलरामपुर जिले की आर्थिक क्रियाकलाप 

आर्थिक क्रियाकलाप की बात करें तो यहां जिले में कृषि उत्पादन के साथ लघु उद्योग और देश की सबसे बड़ी चीनी मिल बलरामपुर चीनी मिल, बलरामपुर शहर के कुछ दूरी पर स्थित है और देश के सबसे बड़े चीनी मिल उद्योग में से एक है। यहां का व्यवसाय पशुपालन और कृषि पर आधारित है। बलरामपुर जिले के लोग दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और विदेश में जाकर काम करते हैं। वहां से पैसा कमा कर बलरामपुर जिले में लाते हैं और यहां की बाजारों में काफी भीड़ देखने को मिलती है।

बलरामपुर जिले की प्रमुख फसले

गेहूं, धान, गन्ना और सब्जियां आदि हैं।

बलरामपुर जिले के पर्यटन स्थल

बलरामपुर जिले के पर्यटन स्थल में कोयला बाग यहां का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। कोयला बाग पूरे राज्य के पर्यटन स्थल शांति और शुद्ध वातावरण के लिए जाना जाता है। बलरामपुर में गाजियाबाद से कुछ स्थान या प्राकृतिक और मनोरंजन के थीम पर आधारित स्थान है, जहां पर सैलानी लोग असीम आनंद व अनुभूति का आनंद प्राप्त करते हैं।
 

बलरामपुर में देवीपाटन मंदिर 

देवीपाटन मंदिर जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। तुलसीपुर में प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसमें देवी पाटन के नाम से पूरे देश में प्रसिद्ध मंदिर को हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी दुर्गा के 51 शक्ति पीठों में से एक है। कहा जाता है जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती की लाश को लेकर जा रहे थे तब सती का कंधा इस स्थान पर गिर गया था। जिससे इस मंदिर का नाम पाटेश्वरी पड़ा क्योंकि कंधे को संस्कृत में पट कहते है। भारत और नेपाल के श्रद्धालु इस मंदिर साल भर आते हैं। यहां नवरात्रि के समय में एक भव्य उत्सव आयोजित होता है। देवीपाटन सिद्ध पीठ मंदिर नाग संप्रदाय के गुरु गोरखनाथ द्वारा स्थापित किया गया था, यहां पर मौजूद मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। 11वीं शताब्दी में श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव ने इस मंदिर का जड़नो उध्धार करवाया था। बलरामपुर का शाही परिवार आज भी मंदिर का केयरटेकर है। हर साल चैत्र पंचमी को पीर रतन नाथ के देवता को नेपाल के डाक से देवी पाटन मंदिर में लाया जाता है। जहां देवी के साथ उनकी पूजा की जाती है। 
 
बिजली पुर मंदिर बलरामपुर में यह मंदिर स्थानीय लोगों में काफी प्रसिद्ध है, जो बिजली पुर के नाम से जाना जाता है। 19वीं शताब्दी में बलरामपुर के महाराज द्वारा स्थापना की गई थी और लाल बलुआ पत्थर से जटिल नक्काशी का एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करता है जो पूरी संरचना को कवर करता है मंदिर के गर्भ गिरे में कोई मूर्ति नहीं है लेकिन जमीन से गहरी ढके हुए छेद इसके बारे में आकाशीय बिजली मंदिर के निर्माण के लिए जगह को चिन्हित किया गया था। बलरामपुर शहर से इसकी दूरी लगभग 6 किलोमीटर पर है।
 
पवई वाटर फ्लो यह जल प्रभाव समर शोध अभी चंदनिया नदी पर स्थित है 100 वर्णन नदी स्थिति पर 100 फीट ऊंचाई से गिरता है लोग विभिन्न अवसर पर यह आनंद लेने आते हैं पर्यटनों का बलरामपुर से जमुनिया घाट तक वहां की कर सकते हैं अंतिम डेढ़ किलोमीटर पैदल यात्रा करनी होती है यह प्राकृतिक मनोरंजन बलरामपुर के लिए बहुत आशीष जगह है श्रावस्ती सूत्र राप्ती नदी के तट पर स्थित है 

बलरामपुर की प्रमुख हस्तियां

यहां पर नाना जी देशमुख द्वारा गोंडा बलरामपुर रास्ते पर 1978 में लगभग 50 एकड़ के क्षेत्र में जय प्रभाग ग्राम बसाया गया था वही इस गांव को आदर्श गांव के रूप में विकसित करना चाहते थे। हॉस्पिटल, कॉलेज, पोस्ट ऑफिस बैंक आदि कई सारी सुविधाएं मौजूद थी। बलरामपुर में शिक्षा के क्षेत्र में काशी की संज्ञा दी जाती है छोटे-बड़े तमाम मंदिर के कारण इसे छोटी अयोध्या भी कहा जाता है। बलरामपुर में शिवाले, मंदिर एवं जलाशय नगर में मौजूद हैं। नील पार्क के पास राधा कृष्ण मंदिर और सिटी पैलेस के भीतर एक पूजा गृह एवं मंदिर गौरव का प्रतीक हैं। 
 
नानाजी देशमुख विख्यात भारतीय समाजसेवी हैं, नानाजी देशमुख के का चुनाव क्षेत्र भी बलरामपुर रहा हैं। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में बलरामपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए 1980 में 60 साल की उम्र में इन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर आदर्श गांव की स्थापना कर भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य में से एक रहे। अपने जीवन पर्याप्त दीनदयाल संस्थान शोध संस्था के अंतर्गत चलने वाले विधि परिकल्पनाओं पर कार्य करते रहे। 1999 में भारत सरकार ने इन्हें शिक्षा स्वास्थ्य तथा ग्रामीण के क्षेत्र में अनुकरण योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया तथा वर्ष 2019 में भारत रत्न दिया गया था।
 
जंग बहादुर शुक्ला प्रसिद्ध गणितज्ञ का 3 जनवरी 1937 को बलरामपुर जिले में जन्म हुआ था, उनका योगदान बायो फूड्स डायनेमिक में महत्वपूर्ण काम किया। डॉक्टर शुक्ला ने लुब्रिकेशन में खुद्रेपन प्रभाव के संबंध में एक नया नेतात्मक सिद्धांत प्रस्तावित किया था। जिसे एक सफल प्रयोग माना जाता है। 1982 में गणितज्ञ और विज्ञान श्रेणी में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1980 में उनके गणित सहित भौतिक विज्ञान में उद्योग द्वारा सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया।
 
रानी जगदंबा कुमारी देवी का जन्म 1918 को बलरामपुर जिले में हुआ। नेपाल के लेफ्टिनेंट जनरल मदन शमशेर जंग बहादुर राणा की पत्नी और प्रधानमंत्री शमशेर जंग बहादुर राणा की बहु थीं। उन्होने शमशेर वाराणसी तथा कई धार्मिक स्थान पर जगदंबा देवी नेपाली धर्मशाला का निर्माण करवाया। साथ ही पीने के लिए जल और मंदिर का कार्य भी किया। साल 1956 में उन्होंने अपने पति के समृति में मदन पुस्तकालय की स्थापना की। प्रसिद्ध नेपाली लेखकों को पुरुस्कृत करने की परंपरा की शुरुआत की। 
 
बेकल उत्साही उनका वास्तविक नाम सफीक खान लोधी था। वे कवि व लेखक के साथ राजनीतिज्ञ भी थे। बेकल उत्साही का जन्म 1928 में बलरामपुर में हुआ था। उनको हिंदी उर्दू के बीच की दूरी कम करने वाले साहित्यकार माना जाता है। बैकल उत्साही को कांग्रेस पार्टी से जुड़ा और इंदिरा गांधी के करीबी माना जाता था। जिसके फल स्वरुप उनको राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया। साल 1976 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 
 
इनके दामाद अफरोज अहमद प्रसिद्ध हस्तियों में से एक थे। जो पर्यावरण वैज्ञानिक है। अली सरदार जाफरी भारतीय उर्दू साहित्यकार थे और इनका जन्म 9 नवंबर 1913 को बलरामपुर जिले में हुआ था। उनकी प्रसिद्ध रचनाएं; वॉच जामुन, नई दुनिया, एशिया जाग उठा, मेरा सफर आदि प्रमुख थी। साल 1997 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, तथा 1967 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 
आकाश मिश्रा भारतीय फुटबॉल के खिलाड़ी थे आकाश मिश्रा का 27 नवंबर 2001 को बलरामपुर जिले में जन्म हुआ। इंडिया नेशनल टीम और इंडिया सुपर लीग में हैदराबाद टीम के साथ खेलते हैं। साल 2019 में जब भारत ने सैफ अंडर 18 चैंपियनशिप ट्रॉफी जीता, तो ये उनमें प्रमुख खिलाड़ियों में से एक थे।
 
भारतीय राजनीतिज्ञ नवाब मलिक का जन्म 1959 को बलरामपुर जिले में हुआ था। नवाब मलिक NCP के राष्ट्रीय प्रवक्ता थे और मुंबई के NCP के गठबंधन सरकार में अल्पसंख्यक विकास तथा कौशल विकास मंत्री भी रहे। साल 1996, 1999 और 2004 में नेहरू नगर विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे तथा 2019 में अणुशक्ति नगर से विधायक बने।
 
अटल बिहारी वाजपेई बलरामपुर से पहला चुनाव जीत कर संसद पहुंचे। अटल जी ने अपने करियर की शुरुआत बलरामपुर लोकसभा सीट से किया था। सन 1957 में अटल बिहारी वाजपेई जी ने जंक्शन पार्टी के टिकट पर बलरामपुर लोकसभा से सीट से चुनाव जीता था।

बलरामपुर जिले का राजनैतिक इतिहास

बलरामपुर लोकसभा चुनाव 1952 में संपन्न हुआ। देश के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जीत हासिल की थी। बलरामपुर लोकसभा सीट 1957 में वजूद में आई। देश के दूसरे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का सीधा मुकाबला किसी दल से नहीं था और कई दल अपनी विचारधारा के साथ मैदान में उतर रहे थे। परजा शोषण पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी इंडियन और भारतीय जनता दल जैसे मुख्य विपक्षी दल बनने की कोशिश करने में लगे थे, इन सभी दलों के पास कुछ वोट थे लेकिन यह हर राज्य में प्रभावशाली नहीं थे। इन दलों के विचारधारा आपस में बहुत अलग थे, इससे कांग्रेस के खिलाफ कोई एक भी नहीं हो पा रहा था, हाल ही में कुछ ऐसा पॉकेट बने थे जहां पर डाल मजबूती के साथ थी। जैसे-जैसे ही बलरामपुर में भारतीय जनसंघ के लिए माना जाता है 1957 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनसंघ टिकट पर अटल बिहारी वाजपेई जी ने लोकसभा चुनाव जीत, कांग्रेस के हैदर अली हुसैन को हराया। अटल जी को 118380 वोट मिले थे जबकि हैदर अली को भी 108568 मिल सके। साल 1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सुभद्रा जोशी के पक्ष में बड़ा माहौल बनाया और इस बार अटल बिहारी वाजपेई चुनाव हार गए सुभद्रा जोशी को 1 लाख 2260 वोट मिले वहीं पर अटल जी को 1208 वोट मिले। सुभद्रा जोशी का चुनाव जीतना अटल जी को व्यक्तिगत झटका था। 1962 में भारतीय जन संघ की चार से बढ़कर 14 लोकसभा सीट पर जीत दर्ज कर पाने में कामयाब रही। लेकिन अटल जी अपनी सीट हार गए। 1967 के चुनाव को और मेहनत से लड़ा और अपनी पुरानी गलतियों को सुधारा और अटल जी को चुनाव में बड़ी जीत मिली अटल जी को 142440 वोट मिले थे वहीं पर सुभद्रा जोशी को 110704 वोट मिल सके। साल 1971 में कांग्रेस पार्टी ने यह सीट वापस जीती। चंद्रभाल मणि तिवारी यहां के सांसद चुने गए। 1977 में जब आपातकाल के बाद चुनाव हुए पूरे उत्तर भारत में कांग्रेस विरोधी लहर चल रही थी। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सरकार की नसबंदी योजना ने लोगों के मन में पार्टी के प्रति नफरत पैदा कर दिया था। भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे एकजुट विपक्ष पार्टी जनता पार्टी कहलाई। बलरामपुर लोकसभा सीट पर जनता पार्टी के टिकट पर नानाजी देशमुख ने चुनाव जीता। 
 
कुछ ही साल में जनता पार्टी में टकराव शुरू हो गया। पार्टी बिखरने लगी जनता पार्टी टूट गई, तो इस पुरानी पार्टी में से कई नई पार्टियों का जन्म हुआ। जहां पर विरोधी बिखर गए थे, इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस फिर से एकजुट हो गई, और जब 1980 में लोकसभा का चुनाव हुआ तो बलरामपुर सीट पर एक बार फिर से कांग्रेस का कब्जा हो गया। चंद्रबली मणि तिवारी फिर से लोकसभा सांसद चुने गए। 1984 में कांग्रेस के दीप नारायण ने कांग्रेस पार्टी की टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता और 1989 में लोकसभा चुनाव पिछले कई चुनावों से अलग थे, कांग्रेस पार्टी के सामना जनता दल से करना पड़ा, जबकि भाजपा उत्तर भारत में मजबूत हो रही थी। बलरामपुर लोकसभा सीट पर एक निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल थी नाम था फैंसी उल रहमान उर्फ मुंडन खान सीधे मुकाबले में भाजपा के सत्यदेव सिंह और कांग्रेस के चंद्र बली मणि तिवारी को हरा कर की। 1991 में भाजपा के सत्यदेव सिंह को बहुत आसानी से जीत मिली। 1996 में लोकसभा चुनाव में सत्यदेव सिंह के खिलाफ समाजवादी पार्टी ने इकबाल हुसैन को टिकट दिया जाता है। बलरामपुर की राजनीति में बड़ा दबदबा रखने वाले हुसैन गोसडी विधानसभा सीट से कई बार विधायक चुने जा चुके थे। इस बार उन्होंने बलरामपुर लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया इकबाल के पक्ष में माहौल बनता देखकर बलरामपुर जिले की तुलसीपुर विधानसभा के तत्कालीन विधायक और बाहुबली नेता रिजवान जहीर बतौर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव में उतर गए। अब चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला हुआ लेकिन इस बार सीधा फायदा भाजपा के सत्यदेव सिंह को मिला भाजपा विरोधी वोट बट जाने से सत्यदेव सिंह को लोकसभा चुनाव में आसान जीत मिली सत्यदेव सिंह 166000 वोट से अधिक मिले इकबाल हुसैन को 108000 वोट से कुछ अधिक मिले निर्दलीय रिजवान को 99 हजार से कुछ और अधिक मिले। रिजवान जहीर भले इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे लेकिन उनकी परफॉर्मेंस ने यह साबित कर दिया अगर मजबूत पार्टी से टिकट मिले तो पक्की जीत मिल सकती है। 
 
1998 में रिजवान को टिकट समाजवादी पार्टी ने दिया। गठबंधन की सरकार का टिक न पाने की वजह से लोकसभा भंग हुई और 1999 फिर से लोकसभा का चुनाव हुआ बलरामपुर लोकसभा सीट पर एक बार फिर से रिजवान जाहिर ने जीत हासिल किया। रिजवान ने 255000 से अधिक वोट मिले, जबकि भाजपा के कौशल तिवारी को 235000 से कुछ अधिक वोट मिले सके। 2004 लोकसभा चुनाव में, चुनाव से पहले रिजवान जहीर ने पार्टी बदली और बसपा में शामिल हो गए रिजवान जहीर ने सिर्फ पार्टी ही नहीं बदली बल्कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव पर तीखे टिप्पणी किया और कहां बलरामपुर से मुलायम सिंह खुद क्यों ना लड़ जाएं। 2004 लोकसभा चुनाव में रिजवान जहीर ने बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ा और भाजपा ने बृजभूषण शरण सिंह को मैदान में उतरा, तो सपा ने डॉक्टर मोहम्मद उमर को टिकट दिया। भाजपा के बृजभूषण शरण सिंह इस बार आसानी से चुनाव जीत गए उन्होंने 2,70,000 से अधिक वोट पाए। जबकि दूसरे नंबर पर रिजवान जहीर को 2,18,000 ज्यादा वोट मिले, वही सपा प्रत्याशी मोहम्मद उमर को 1,65,000 से अधिक वोट मिले। 2008 में परिसीमन के बाद बलरामपुर लोकसभा सीट का वजूद खत्म कर दिया गया। बलरामपुर लोकसभा सीट को श्रावस्ती में शामिल कर दिया गया।

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