आज के आर्टिकल मे हम बात करने जा रहे हैँ बाराबंकी जिले के बारे में जो आपको प्रीतियोगी परीक्षाओं के नजर से बहुत उपयोगी है। इस आध्याय मे हम इस जिले के इतिहास, भूगोल, राजनैतिक तथ्य, क्षेत्रफल, पर्यटन स्थल और यहाँ के कुछ महत्वपूर्ण हस्तियों के बारे मे भी पढ़ेंगे।
बाराबंकी जिला का इतिहास
बाराबंकी जिला अयोध्या मंडल के अंतर्गत आता है। बाराबंकी जिले को पूर्वांचल प्रवेश द्वार के रूप में भी जाना जाता था। इसे कई संत और साधुओं की तपोस्थली होने का गौरव प्राप्त है। इस जिले के नामकरण की कई प्राचीन मान्यताएं प्रचलित है। उनमें सबसे लोकप्रिय प्रचलन यह है कि भगवान बारह के पुनर्जन्म की पावन भूमि है। जिला का मुख्यालय दरियाबाद में 1858ई. तक था। इसके बाद में 1859ई. को नवाबगंज में हस्तांतरित किया कर दिया गया था।
प्राचीन समय में इस जिला पर सूर्यवंशी राजाओं द्वारा शासन किया गया था। जिसकी राजधानी अयोध्या थी, राजा दशरथ और उनके पुत्र भगवान श्री राम इस वंश के राजा थे। इस जिले पर चंद्रवंशी राजाओं के शासनकाल में बहुत लंबे समय तक था महाभारत के युद्ध के दौरान यह गौरव राजा का हिस्सा हुआ करता था और भूमि के इस महाभारत युद्ध के दौरान यह गौरव राज का हिस्सा हुआ करता था भूमि के इस हिस्से को कुरुक्षेत्र के नाम से जाना जाता था पांडवों ने अपनी मां कुंती के साथ अपने राज्य निर्वाचन का कुछ समय घाघरा नदी के तट पर बिताया था उपलब्धियां दस्तावेजों के अनुसार 1030 ई इस क्षेत्र पर महमूद गजनी के भाई-भाई सैयद सलाम मकसूद ने हमला किया था उसे शताब्दी में मदीना के कुतुबुद्दीन गहन ने हिंदुओं रियासतों पर कब्जा किया करना चालू कर दिया था जिससे मुस्लिम प्रभुता स्थापित हो गई महान मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में इस जिले के अवध और मानिकपुर की सरकारों के अधीन विभाजित किया गया था ब्रिटिश राजा के दौरान कई राजा अपनी आजादी के लिए लड़ाई लड़ते रहे और ऐसा कहते हुए इस महान क्रांतियां ने अपना बलिदान दिया राजा बलभद्र सिंह चहलारी ने लगभग 1000 क्रांतिकारियों के साथ ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन बलिदान किया भारतीय स्वतंत्रता की पहली युद्ध की आखिरी लड़ाई दिसंबर 1858 ई को इस जिले से में हुई थी कल अंतर में सन 1921 में तीसरे तीसरे में गांधी की असहयोग आंदोलन शुरूआत किया गया जिसमें एक बार फिर आजादी के लेख को पराजलित किया गया यहां भी जिले में अंग्रेज पहले राज किया करते थे प्रिंस आप वह के भारत आक्रमण का एप्रोच विरोध किया फल स्वरुप विरोध प्रदर्शन आयोजन किया गया था सरकारी स्कूलों में नवाबगंज पर बड़ी संख्या में स्वतंत्रता सेनानियों की गिरफ्तारी हुई जिसमें रफी अहमद किदवई भी गिरफ्तार हुई द 10 पक्ष 1922 आंदोलन 1930 ई नामक एक और 1942 में आंदोलन आंदोलन में भारत छोड़ो आंदोलन में जिले के लोग सक्रिय रूप से भाग लिया जिसमें ब्रिटिश राजाओं की रिया रातों की नींद हराम हो गई जिसके फल स्वरुप जिला कांग्रेस कार्यालय को सील कर दिया गया था तुरंत स्थानीय नेताओं ने भूमिगत रहते हुए अपना विरोध जारी रखा क्रांतिकारियों ने विरोध प्रकट करने के लिए 24 अगस्त 1945 को हैदरगढ़ डाकघर को लूट लिया गया था इस तरह आने घटनाएं जीपीओ बाराबंकी संतृप्त में भी अथवा को संग्रह की आवाहन पर इस जिले के लोगों ने उत्सव पूर्ण भाग लिया और बड़ी संख्या में गिरधारी दी अंत में 15 अगस्त 1947 को देश ने अपनी लंबे समय से प्रतिक्षाओं स्वतंत्रता प्राप्त किया बाराबंकी के हर घर में देश के बाकी हिस्सों की तरह इस अवसर को महान उत्सव के साथ मनाया गया
बाराबंकी जिले का भूगोलिक क्षेत्रफल:
भौगोलिक रूप से बाराबंकी जिले का कुल क्षेत्रफल 3891.5 वर्ग किलोमीटर है। जो घाघरा और गोमती नदी के लगभग समांतर धाराओं तक सीमित है। पूर्व से पश्चिम तक जिले की अधिकतम लंबाई 92 किलोमीटर और चौड़ाई 93 किलोमीटर है। यह उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों की सीमाओं से घिरा हुआ है। जिसके नाम क्रमशः उत्तर में सीतापुर, उत्तर पूर्व में घाघरा नदी के द्वारा पश्चिम इसके आगे बहराइच और गोंडा स्थित है। जबकि पूर्वी सीमा पर फैजाबाद जिले के साथ सीमा लगती है। और साथ ही गोमती नदी दक्षिण में एक प्राकृतिक जो अमेठी जिले से विभाजित करती है और पश्चिम में यह लखनऊ जिले से अपनी सीमा को साझा करता है।
बाराबंकी जिले की अर्थव्यवस्था:
आर्थिक रूप से बाराबंकी जिले की अर्थव्यवस्था मुख्यत: कृषि और लघु उद्योगों पर आधारित है। कृषि में बायोगैस यंत्र, पशुपालन, और लघु उद्योग जिले के लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करते हैं। जिले की मुख्य खाद्यान्न फसलों में गेहूं, चावल, मक्का, अफीम, पिपरमिंट का तेल, गन्ना, फल, सब्जियां, फूल, मसाले आदि जिले की प्रमुख फसले हैं। जिले में आम और सब्जियों का निर्यात किया जाता है। ब्रिटिश शासन काल के समय से बाराबंकी अफीम के उत्पादन का प्रमुख केंद्र रहा है। फसलों की खेती के अलावा जिले में पशुपालन आधारित प्रणाली और मछली उत्पादन भी प्रचलित है। जिले के ब्लॉक में मधुमक्खी पालन किया जाता है। साथ ही जिले में भारत सरकार के कृषि विभाग के क्षेत्रीय कृषि बीज परीक्षण और प्रदर्शन किया जाता है।
बाराबंकी जिले में तहसीलें:
बाराबंकी जिले में कुल 6 तहसील है: नवाबगंज, फतेहपुर, रामनगर, रामसनेही घाट, सिरौली गौसपुर, हैदरगढ़।
बाराबंकी जिले में ब्लाक:
बाराबंकी जिले में ब्लॉक की संख्या 15 है: बंकी, मसौली, देवा, हरख, फतेहपुर, हैदरगढ़, दरियाबाद, सूरतगंज, सिद्धौर, पूरे दलाई, निंदूरा, त्रिवेदीगंज, रामनगर, सिरौली गौसपुर, बेनीकोडर।
बाराबंकी जिले में पुलिस थाना:
बाराबंकी जिले में थानों की संख्या 23 है: हैदरगढ़, सतरिख, दरियाबाद, बड्डूपुर, देवा, कुर्सी, जैदपुर, मोहम्मदपुर, राम नगर, फ़तेहपुर, सफदरगंज, कोतवाली, रामसनेही घाट, असंद्रा, सुबेहा, टिकैतनगर, लोनीकटरा, मसौली, कोठी, घुंघटेर, बदोसराय, जहांगीराबाद, महिला थाना
बाराबंकी जिले में पंचायत और नगर निगम:
बाराबंकी जिले में ग्राम पंचायत की संख्या 1159 है।
बाराबंकी में बोली जाने वाली भाषा अवधि और संपर्क भाषा खड़ी बोली कुछ स्थानों पर उर्दू और अंग्रेजी का प्रचलन भी है।
- बाराबंकी जिले में एक नगर पालिका परिषद है
- बाराबंकी जिले में जनसंख्या कुल - 3260699 (2011) की जनगणना के अनुसार
- पुरुषों की जनसंख्या-1707073
- महिलाओं की जनसंख्या-1553626
- जन घनत्व 837 प्रति किलोमीटर स्क्वायर है
- 1000 पुरुषों पर 910 महिलाएं बाराबंकी जिले में है।
- बाराबंकी में RTO संख्या UP41 है।
- बाराबंकी जिले में 89.85 फ़ीसदी आबादी अभी भी गांव में रहती है। जिले की औसतन साक्षरता दर 61.75% जिसमें पुरुष साक्षरता दर 70.27% और महिला साक्षरता दर 52.34% है।
बाराबंकी जिले की नदियां:
घाघरा, कल्याणी, शारदा, और कुछ अन्य छोटी नदियां व झीलें।
बाराबंकी जिले की महान हस्तियां:
के डी सिंह हॉकी के महान खिलाड़ी थे उनका पूरा नाम कुंवर दिविजय सिंह था। उन्हें लोग प्यार से बाबूजी कहकर बुलाते थे। केडी सिंह ने 16 साल तक उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया था। इतना ही नहीं वह भारतीय टीम के कप्तान भी रहे। 1948 में लंदन ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले भारतीय टीम के नए उप कप्तान थे। वह भारतीय हॉकी टीम के कोच भी रहे थे। बाबू केडी सिंह को सर्वश्रेष्ठ हॉकी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।
खुमार बाराबंकवी एक भारतीय उर्दू कवि और गीतकार थे उनका पूरा नाम मोहम्मद हैदर खान था। उनको लोग प्यार से दुल्लन भी कहा करते थे। खुमार ने शाहजहां, बारादरी में साज और आवाज में कई हिंदी फिल्मों के गीत भी लिखे हैं। बाराबंकी जिले के कटरा मोहल्ले के निवासी थे।
नसरुद्दीन शाह हिंदी फिल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। उन्होंने अपनी पहचान एक अभिनेता के साथ-साथ एक निर्देशक और बतौर लेखक के रूप में भी बनाई। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 1972 में की थी। उन्होंने हिंदी फिल्मों के अलावा बंगाली, मलयालम, तमिल, मराठी और इंग्लिश फिल्मों में भी काम किया है। इनको नेशनल फिल्म फेयर अवार्ड तथा भारत सरकार की तरफ से पदम श्री और पद्म भूषण पुरस्कार मिले हैं। नसरुद्दीन शाह का जन्म बाराबंकी जिले के घोसियाना मोहल्ले में हुआ था।
बेनी प्रसाद वर्मा एक भारतीय राजनैतिज्ञ और समाजवादी पार्टी के सदस्य थे। वह समाजवादी पार्टी के अलावा कांग्रेस पार्टी के भी सदस्य रहे थे। वह कांग्रेस की सरकार में केंद्रीय इस्पात मंत्री रहे। 1992 में उत्तर प्रदेश के कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर वह कैबिनेट मंत्री बने। 1996 से 1998 तक वह केंद्र सरकार में संचार मंत्री भी रहे थे। बेनी प्रसाद वर्मा का जन्म बाराबंकी जिले की सिधौली के निवासी थे।
संत जगजीवन दास: संत जगदीश दास का जन्म 1727 में बाराबंकी जिले के सदरपुर गांव में हुआ था एक पारिवारिक जीवन गुजारते हुए संत जगजीवन दास एक महान संत और साहित्यिक प्रतिभा साबित करती हुई सीरी में एक दर्जन से ज्यादा साहित्यिक रचनाएं जिसमें हिंदी साहित्य की विरासत को समृद्ध किए हैं लाख विनाश महाप्रलय शब्द सागर आदि उनकी महत्वपूर्ण रचनाएं हैं।
संत कवि बैजनाथ राम कथा साहित्य की प्रसिद्ध भाषा बिंदु थे उनका जन्म 1816 ई की ददरेवा गांव में हुआ था कवि बैजनाथ की पहली साहित्यिक रचना 1932 में प्रकाश में आई थी।
अतुल वर्मा एक भारतीय आचार्य हैं जिन्होंने चीन के नानजिंग में युद्ध ओलंपिक का तीरंदाजी में प्रतियोगिताओं को विकास पदक जीता था अतुल वर्मा बाराबंकी जिले के नवाबगंज तहसील के हजरत पुर गांव की रहने वाले हैं इसके पहले अतुल वर्मा 2013 में तुर्की में तीरंदाजी प्रतियोगिताओं में गोल्ड मेडल जीत और एशियाई ग्रेट सिर्फ तीरंदाजी प्रतियोगिताओं में सिल्वर मेडल भी जीत चुके हैं
अख़लाकुर रहमान किदवाई एक भारतीय केमिस्ट और राजनीतिक थे उन्होंने बिहार राज्यपाल के रूप में कार्य किया वह 1999 से 2004 तक राज्यसभा के सांसद भी रहे इसके अलावा ईएमयू में विज्ञान संस्था के संयत्र क डिन और कुलपति भी रहे साथ साथ हुई यूपीएससी के अध्यक्ष भी रहे थे 1921 में उनका जन्म बाराबंकी जिले के बड़ागांव में हुआ था
शंकर दयाल बाजपेई फ्लाइट लेफ्टिनेंट शंकर दयाल बाजपेई का जन्म बाराबंकी जिले की उन बेटो में आते हैं जिन्होंने देश की सीमाओं पर सतकर्ता रखते हुए अपना जीवन बलिदान किया था 1960 में बाराबंकी के गांव शरीफ शरीफाबाद में पैदा हुए थे वह 1948 में भारतीय वायुसेना में शामिल हुए और 1982 में हुए एक कमिश्नर अधिकारी बने
राम सागर रावत एक राजनैतिज्ञ है, जो कि जनपद के चार बार सांसद और तीन बार विधायक रहे थे। वह 1989, 1991, 1996, 1999 में बाराबंकी लोकसभा से प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उनके बड़े बेटा राम मगन रावत भी समाजवादी पार्टी से दो बार विधायक रहे चुके हैं, अपने जीवन काल के दौरान अवध के तालुकदार संघ के प्रमुख भी रहे थे। सन 1924 से 1928 तक उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री रहे। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में आदित्य योगदान दिया था। वह बाराबंकी जिले के दरियाबाद के रहने वाले थे।
वारिस अली शाह: वारिस अली शाह एक भारतीय सूफी संत और वारिस सूफी आदेश के संस्थापक थे। उन्होंने व्यापक रूप में पश्चिम यात्रा की और लोगों को अपनी आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करवाई। बाराबंकी जिले के देवास से थे।
रामकरन वर्मा एक ऐसे किसान है जो अपने राज्य के छोटे भारतीय किसान और ग्रामीण गांव में उन्नत और अधिक लाभदायक कृषि तकनीक लाने के लिए जाने जाते हैं जिसके लिए उन्हें पद्म श्री समेत कई भारतीय पुरस्कार मिल चुके हैं। वह बाराबंकी जिले के दौलतपुर गांव के रहने वाले हैं।
पंडित महेश दत्त हिंदी और सांस्कृतिक दोनों के एक महान विद्वान थे उनकी प्रमुख साहित्यिक रचनाओं काव्य संग्रह माधव निदान पद्म पुराण आज शामिल है वह बाराबंकी जिले की धनौली गांव के निवासी थे।
अब्दुल मजीद दरियाबादी: अब्दुल मजीद दरियाबादी एक भारतीय मुस्लिम लेखक थे जो कुरान की भी व्याख्या करते हुए वह दरियाबादी दरियाबादी खिलाफत आंदोलन में सक्रिय रूप से जुड़े रहे वह 1898 को दरियाबाद में उनका जन्म हुआ था।
मसरूल हसन एक आधुनिक भारत के इतिहासकार थे जिन्होंने भारत के विभाजन कामिनी रिलिजन और दक्षिण एशिया में इस्लाम के इतिहास पर लिखा हुआ बाराबंकी जिले की बिलासपुर से रहने वाले थे उनके पिता मोहम्मद हसन भी इतिहासकार थे
मोहसिन किदवई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के नेता जो छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के सदस्य रहे जिनके अलावा कांग्रेस पार्टी के कार्य समिति सदस्य रहे वह बाराबंकी जिले की अहमदपुर से हैं अनीश किदवई एक लेखक कार्यकर्ता और एक राजनीतिक भी रहे 1968 में पैदा हुई अनीश को साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजा गया था मोहसिन किदवई दो बार राज्यसभा सांसद भी रहे।
बीएलपीएल पूनिया कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता 1971 में यूपी कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी रहे प्रियम पूनिया 15वीं लोकसभा क्षेत्र से के दौरान राजनीति में आए इसके अलावा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और मुलायम सिंह यादव की मुख्य सचिव भीड़ है चुके हैं वर्तमान में बाराबंकी के गांधी आश्रम में उनके निवास है।
अशरफ उल्लाह हक एक भारतीय उर्दू कवि थे वह अपने रोमांटिक और क्रांतिकारी कविता के लिए जाने जाते थे उन्होंने मजाल लखनवी के नाम से जाने जाते थे उन्होंने उर्दू के गजल और निजाम की रचना वह पटकथा एवं कवि लेखक जावेद अख्तर के मामा थे
बाराबंकी लोकसभा क्षेत्र का संक्षेप में इतिहास:
बाराबंकी जिले में कुल पांच विधानसभा सीटें आती हैं 1.कुर्सी, 2.जैतपुर, 3.रामनगर, 4.हैदरगढ़, 5.बाराबंकी सदर जिसमें जैतपुर और हैदरगढ़ अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
बाराबंकी लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश के 53वीं लोकसभा सीट है। जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। विधाओं से भरा जिला आजादी के आंदोलन में भी जिले के आज ग्रहण भूमिका निभाई थी लेकिन आजादी की इतने सालों बाद भी बाराबंकी अब भी शहरीकरण से कोसों दूर है क्योंकि यहां की जनसंख्या 89.85 % आबादी अभी भी गांव में रहती है। जिले की औसतन साक्षरता दर 61.75% है। और पुरुष साक्षरता दर 70.27 फीस परसेंट है और महिला साक्षरता दर 52.34 परसेंट है बाराबंकी में हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस के मोहनलाल सक्सेना और 1957 में स्वामी रमन नन्द जी ने जीत दर्ज किया था 1971 सेवन और 1984 तक अलग-अलग पार्टियों ने इस सीट पर कब्जा किया 1992 से 1996 तक समाजवादी पार्टी के रामसागर रावत ने लगातार तीन बार यहां से जीत दर्ज किया लेकिन 1998 के आम चुनाव में भाजपा की बैजनाथ ने राम सागर रावत को हरा दिया मगर 1999 में हुए आम चुनाव में रामसागर रावत ने बीजेपी के बैजनाथ रावत को हराकर अपनी पिछली हार का बदला से ले लिया 2004 में बसपा ने इस सीट पर पहली बार कब्जा किया 2009 में कांग्रेस के प्रत्याशी बाराबंकी की सीट से जीत कर 25 वर्षों का सूखा खत्म किया 2014 में यह सीट भाजपा ने जीती भारतीय जनता पार्टी की प्रियंका सिंह रावत यहां से सांसद चुनी गई प्रियंका सिंह रावत बाराबंकी की पहली महिला सांसद है और 16 में लोकसभा में वह खड़ उपभोक्ता और जन वितरण प्रणाली संबंधित मामलों की स्थाई समिति की सदस्य भी रही थी बाराबंकी में जीजी के नाम से लोकप्रिय प्रियंका सिंह रावत सलामी लोकसभा में चौथी सबसे कम उम्र की सदस्य थी पिछले 5 सालों के दौरान उनकी लोकसभा की उपस्थिति 43% फिर से दी रही थी इसके अलावा वह 34 डिबेट में हिस्सा लिया साल 2014 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर बसपा तीसरे नंबर पर सपा चौथे नंबर पर और तक पांचवी नंबर पर रही थी वर्ष 2014 में यहां पर 17 लाख 21 हजार 278 मतदाताओं ने अपने मतों का प्रयोग किया था जिनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 53% और महिला मतदाताओं की संख्या 40% थी बाराबंकी की 76% आबादी हिंदू और 22% मुसलमानों और अन्य धर्म के लोग भी इस जिले में निवास करते हैं वर्तमान में बाराबंकी लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस और सपा की गठबंधन की प्रत्याशी मान्यवर श्री तनुज पुनिया सांसद हैं 250000 से अधिक वोटो से अपनी जीत दर्ज किया है।
बाराबंकी में घूमने वाली जगह:
सिद्धेश्वर महादेव: यह प्रसिद्ध सिद्धेश्वर महादेव मंदिर है। यहां हर साल दिसंबर से जनवरी के महीने के बीच में शिवरात्रि के अवसर पर एक बहुत बड़ा मेला लगता है।
सूफी संत कई का मकबरा: लोग सूफी संत कई के मकबरे पर श्रद्धांजलि देने आते हैं। प्रत्येक ईद के अवतार पर यहां एक विशाल मेले का आयोजन होता है।
कुंडेश्वर मंदिर: प्राचीन कहावतों के अनुसार पांडवों की माता कुंती के नाम पर रखा गया था इस मंदिर का नाम । प्रारंभ में इसका नाम कुंतीपुर था। यहां कुंडेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। जहां लोग बड़ी संख्या में आते हैं।
रफी अहमद किदवई स्मारक भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी राजनीतिक और राजनेता स्वर्गीय श्री रफी अहमद की दवाई का जन्म स्थल है उनके स्वर्गवास के बाद उन्हें दफनाया गया था और उनकी याद में एक मकबरा मनाया गया था जो मौली प्रसिद्ध है।
लोधेश्वर महादेव मंदिर: यह मंदिर प्राचीन शिव मंदिर है जो घाघरा के तट पर बाराबंकी जिले के रामनगर तहसील के ग्राम महादेव में स्थित है। लोधेश्वर महादेव देव का प्राचीन इतिहास है। इस मंदिर में शिवलिंग पृथ्वी की सतह पर मौजूद 52 लिंगो में से एक आकर्षक और दुर्लभ दिखाई पड़ता है।
हनुमान मंदिर बाराबंकी जिले के प्रमुख धार्मिक स्थल में से एक है। यह मंदिर मुख्य गल्ला मंडी में स्थित है। यह मंदिर धन कोर चौराहे के पास में पड़ता है यह मंदिर बहुत प्राचीन मंदिर है।
शनेश्वर महादेव मंदिर बाराबंकी जिले के एक प्रमुख स्थान में से या मंदिर भगवान शिव जी के समर्पित है मंदिर में भगवान शिव के लिंग का दर्शन करने के लिए मिलते हैं और नाग देवता की मूर्ति के दर्शन करने के लिए मिलते हैं या गोमती नदी के किनारे बना हुआ है।
पारिजात वृक्ष बाराबंकी जिले में पारिजात वृक्ष अपने आप में कई ममानो में अनोखा है और यह अपनी तरह पूरे भारत में इकलौता वृक्ष पाया जाता है बाराबंकी जिले के मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूरी पर इंदौर नामक गांव वहीं पर स्थित है इस गांव का नाम करण माता कुंती के नाम पर हुआ था। इस जगह पर पांडवों ने अपने माता कुंती के साथ कुछ समय तक अज्ञातवास का समय काटा था। इंदौर गांव में भारत का एकमात्र पारिजात वृक्ष है। कहा जाता है कि इसको केवल छूने मात्र से शरीर की सारी बीमारियां थकान मिट जाती है। इंद्रलोक में और रुक्मणी भी इसको छूकर अपना थकान मिटाया करती थी। आमतौर पर प्रजापत वृक्ष 10 फीट से 25 फीट लंबा और 25 फीट ऊंचा होता है। लगभग 45 फीट ऊंचा तथा 50 फीट से अधिक मोटा है इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अपनी तरह इकलौता वृक्ष है। इस वृक्ष के बीज नहीं होते हैं और कई लोगों के द्वारा पता करने पर यह पता चला की कलम बोलने से ब्रिज नहीं होते हैं। इस वृक्ष पर जून महीने के आसपास बेहद खूबसूरत सफेद रंग का फूल खिल जाता है। पारिजात के फूल केवल रात के वक्त मिलते हैं और सुबह होते ही मुरझा जाते हैं। इसके फूलों को लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व दिया जाता है। बाबा जी के अनुसार श्री राम सजीवन दास द्वारा जानकारी प्राप्त की गई तो अपनी जन्मभूमि भी उन्होंने बताया था द्वापर युग के अंतिम में या पेड़ अर्जुन ने अपने बानो द्वारा इंद्रलोक नंद वंश से युद्ध करके लाए थे। इसकी जड़े काफी दूर तक पाई जाती है। यह 6 महीने तक हरा-भरा रहता है।
श्री धन नाग आश्रम : बाराबंकी का सबसे सुंदर आश्रम श्री धन नाग आश्रम पर उसकी पुजारी ने मुख्य मार्गदर्शन और मुख्य संत श्री विक्रम दास जी महाराज जी के श्री श्री 108 विक्रम दास महाराज जी महाराज जी और उन्होंने धन नाग के बारे में जानकारी दी यह आश्रम पर दृष्ट वहीं पर आसपास में सरोवर है।
श्री दानापुर मंदिर जो सीतापुर और सड़क के इस पर बाराबंकी बॉर्डर है। पशुपतियों का चिन्ह चाहत देखने को मिलता है। इस बगीचे में आश्रम बहुत ही सुंदर चित्रकलाओं के द्वारा बहुत ही आनंद ले सकते हैं और बड़ी खूबसूरत से बनाया गया है बड़ा ही अलौकिक चित्र आश्रम का है। विभिन्न प्रकार के आम, पीपल, बरगद जैसे कई वृक्ष लगे हुए हैं। यह कई औषधि है जो पशुओं के कई बीमारियों में काम आती हैं।
बाबा सजीवन दास आश्रम: बाराबंकी जिले के जाट बरौली एक गांव पड़ता है जिसके जिसमें बाबा जारी दास का समाधि है और एक प्रबुद्ध महात्मा और संत थे जाट बरौली में उनका आश्रम पड़ता है उन्होंने इस तपो भूमि को अपनी तपोभूमि के द्वारा संचित किया था बाबा जी तप तपस्या का यश आज भी इस तपो भूमि पर बरकरार है बना हुआ है यानी मंदिर के प्रांगण में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों का आगमन हुआ था प्राकृतिक धरोहर और प्राकृतिक परंपराओं से यह वातावरण जिसका अवलोकन आप लोगों ने कर कर सकते हैं या आश्रम गोमती नदी के किनारे लगभग कुछ ही दूरी पर स्थित है आसपास के जो भक्तगण है जो श्रद्धालुओं और बाबा के आशीर्वाद की कामना कामना करते हैं अत्यंत महत्वपूर्ण यानी एक कुटी बनी हुई है जो की पुजारी जी संरक्षक जी हैं आश्रम के हुए वहां पर देख रहे करते हैं जैसे कि प्राकृतिक वातावरण से परिपूर्ण है या तीन संतों की समाधि भी है उसका दर्शन लोग आकर करते हैं और अपनी मनोकामनाओं को पूरी करते हैं।
बाराबंकी में बगहर झील एक बड़ा जल निकाय है जहां पर तरह-तरह के पशु पक्षी एवं अन्याचली जंतु निवास करते हैं यह रामनगर और सूरतगंज के मध्य रानीगंज कस्बे के निकट स्थित है यह झील जो सिमली नदी में आगे जाकर गिरती है तथा पानी को सीधी नदी में समाहित हो जाता है आप अगर लखनऊ से यहां पर आ रहे हैं तो आपको रामनगर उतरकर सूरतगंज के लिए टैक्सी पकड़ना होगा आप फतेहपुर सूरतगंज मार्ग से सूरतगंज भी आकर यहां पर आ सकते हैं श्री सिद्ध पीठ उदासीन आश्रम बगहर झील का दृष्ट आपको बगल में ही स्थित है सिद्ध पीठ आश्रम बाबा नक्की दास जी के तपो स्थल के पर्सन दिखाई पड़ेगा भगार झील या ना में भी पड़ी हुई है यहां पर लोग मछली का शिकार करने के लिए आते जाते रहते हैं उन्होंने उन शिकारी की ज्यादा दिखाई पड़ती है कुछ पक्षियों बैठी हुई हैं यह पूरी झील का क्षेत्र बड़ा हुआ है बहुत ही खूबसूरत दृष्ट शांति का अनुभव होता है पर वह आप प्राकृतिक वातावरण है।
देवा शरीफ: यह गाजी हाजी वारिस अली शाह की जन्मस्थली है जिन्होंने मानवता के लिए सार्वभौमिक प्रेम के अपनी संदेश से लोगों की कई पीढ़ियां के जीवन को प्रभावित किया था हाजी साहब का 7 अप्रैल 1905 को स्वर्गवास हो गया उनको इस स्थान पर दफना दिया गया था जहां उनकी सरकार वास हुआ था और उसी जगह पर उनके कुछ समर्पित अनुवायु ने जिसमें दोनों धर्म कई धर्म के लोग हिंदू और मुसलमान भक्तों ने उनकी स्मृति में एक भाव स्मारक स्थापित किया जिससे आज भी संतों की स्मारक की उपलक्ष में देवा मेले के नाम से एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है देश के सभी हिस्सों और विदेशियों से तीर्थ यात्री महान सूफी संतकाजी वारिस अली शाह और उनके पिता कुर्बान अलीशा श्रद्धांजलि समर्पित करने के लिए आते हैं। 1857 से 1858 तक भारतीय स्वतंत्रता के पहले युद्ध में स्वतंत्रता सेनानियों ने आखिर तक मोर्चा बिठौली में लेते रहे जो सोती धारा के किनारे पर राजगुरु बक्स और उनके लोगों ने अंग्रेजों से बहादुर के साथ संघर्ष किया इस जगह पर किला और स्वतंत्रता संग्राम के पर्यटन स्थल है जो इसलिए इस स्थान को संरक्षित ऐतिहासिक विरासत सूची में घोषित किया गया था